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केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ को लेकर तीखी बहस, अदालत ने अंतरिम राहत पर फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तीन दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अंतरिम राहत पर निर्णय सुरक्षित रखा।

याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित कई याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन को मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप बताते हुए चुनौती दी है। उनका मुख्य तर्क है कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ (waqf by user) की अवधारणा को हटाने से सदियों पुराने मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धर्मार्थ संपत्तियों का धार्मिक स्वरूप समाप्त हो सकता है, जो औपचारिक वक्फ दस्तावेजों के बिना भी अस्तित्व में हैं।

केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड धर्मनिरपेक्ष कार्य करते हैं, इसलिए इनमें गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अनुचित नहीं है।

इसके अतिरिक्त, सरकार ने बताया कि 1923 से ही सभी वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य है, लेकिन ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ की अवधारणा के कारण निजी और सरकारी संपत्तियों पर अनधिकृत दावे किए जा रहे थे। इस संशोधन का उद्देश्य ऐसे दुरुपयोग को रोकना है।

अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ याचिकाओं को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि “हर कोई चाहता है उसका नाम अखबारों में छपे”, जो याचिकाकर्ताओं के इरादों पर सवाल उठाता है। अदालत का मानना है कि कई याचिकाएं केवल प्रचार या दिखावे की दृष्टि से दायर की गई हैं।

आगे की प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अंतरिम राहत पर कोई आदेश नहीं दिया है, लेकिन केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों को तत्काल लागू नहीं करेगी। अदालत ने इस आश्वासन को दर्ज किया है।

अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और धार्मिक अधिकारों के संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

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