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 बोतलबंद पानी नहीं, जहर पी रहे हैं हम  

 बोतलबंद पानी नहीं, जहर पी रहे हैं हम  

ज्ञानेन्द्र रावत
आधुनिक जीवनशैली के तहत हम सभी अपने जीवन को सुखमय बनाने की दिशा में अद्वितीय प्रयास कर रहे हैं। वह चाहे भौतिक सुख संसाधनों का सवाल हो, खाने-पीने का सवाल हो या फिर परिधान का ही सवाल क्यों न हो, अपनी सामर्थ्यानुसार अच्छे से अच्छे पा लेने या खाने-पीने में खर्च करने में कोई कोताही नहीं करते हैं। लेकिन पिछले लम्बे समय से माइक्रोप्लास्टिक की खाद्य पदार्थों में दिनोंदिन बढ़ती मौजूदगी चिंता का सबब बन गई है। अब तो हालत यह है कि प्लास्टिक के ये कण नदियों और महासागरों ही नहीं, पर्वतों की ऊंची-ऊंची चोटियों पर जमी बर्फ में भी मिल रहे हैं। आज स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि अब ये पीने के पानी में भी मौजूद हैं। जिस बोतलबंद पानी को हम सबसे ज्यादा सुरक्षित मानते हैं, कई अध्ययनों ने यह खुलासा किया है कि वही पानी आजकल जानलेवा बना हुआ है। पैकेज्ड बोतलों में बंद पानी में प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे कण जिन्हें हम माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जानते हैं और उनको सामान्य दृष्टि से हम देख भी नहीं सकते, हमारे लिए कतई सुरक्षित नहीं हैं। इनसे हृदय रोग, मधुमेह और अन्य मानव जीवन के लिए खतरनाक बीमारियों का अंदेशा बढ़ गया है।

यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक है। कोलंबिया यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा स्टीमुलेटेड रैमन स्कैटरिंग माइक्रोस्कोपी की तकनीक के जरिए किए शोध जो प्रोसीडिंग्स आफ दि नेशनल ऐकेडेमी आफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ, से खुलासा हुआ है कि अब बोतलबंद पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक के कण मौजूद हैं। इसने दुनिया के वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। शोध ने यह साबित कर दिया है कि बोतलबंद एक लीटर पानी में माइक्रोप्लास्टिक के औसतन 2,40,000 कण मौजूद हैं। शोध के अनुसार बोतलबंद पानी की अलग अलग बोतलों में प्रति लीटर 1,10,000 से लेकर 3,70,000 तक कण मौजूद थे जिनमें से 90 फीसदी नैनो प्लास्टिक के कण थे जबकि बाकी माइक्रोप्लास्टिक के कण थे।

दरअसल 5 मिलीमीटर से छोटे टुकड़े को माइक्रो प्लास्टिक कहा जाता है जबकि नैनो प्लास्टिक एक माइक्रो मीटर यानी एक मीटर के अरबवें हिस्से को कहा जाता है। गौरतलब यह है कि ये कण इतने छोटे होते हैं कि इंसान के पाचन तंत्र और फेफड़ों में मिलकर मस्तिष्क व हृदय समेत शरीर के सभी अंगों को प्रभावित कर सकते हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ये प्लेसैंटा से होते हुए अजन्मे बच्चे के शरीर में पहुंचकर प्रभावित कर सकते हैं। ये गैस्ट्रिक समस्या से लेकर शारीरिक असमानताओं यथा विकलांगता के कारण भी बन सकते हैं। गौरतलब है कि ये कण विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक से उत्पन्न होते हैं जैसे कि पालीएथिलीन और पालीप्रोपिलीन जो सेहत को और खतरनाक बना सकते हैं। सबसे खतरनाक यह है कि इंसान एक साल में 10 हजार माइक्रोप्लास्टिक के टुकडे या तो खा रहा है या फिर वह सांसों के जरिये अपने शरीर में डालकर जानलेवा बीमारियों को जन्म दे रहा है।

सच तो यह है कि हम बोतलबंद पानी के रूप में पानी नहीं, जहर पी रहे हैं। यह धीरे-धीरे हमारे शरीर के अंगों को बेकार बना रहा है। इसमें प्लास्टिक कणों की मौजूदगी यदि लम्बे समय तक जारी रहती है तो सेहत के साथ-साथ हमारे पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। असलियत में बोतलबंद पानी में अधिकांशत: प्लास्टिक का उपयोग होता है जिसमें ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। संसाधनों की कमी के कारण अक्सर प्लास्टिक बनाने में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल होता है जो पर्यावरण में हानिकारक प्रदूषकों जैसे ग्रीनहाउस गैसों तथा पार्टीकुलेट मैटर आदि के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। प्लास्टिक की बोतल में पानी भरने की प्रक्रिया में प्रति वर्ष 2.5 मिलियन टन कार्बन डाई आक्साइड वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। फिर डिस्पोजेविल पानी की बोतलों का कचरा बहकर समुद्र में जाकर सालाना 9.1 मिलियन समुद्री जीवों की मौत का सबब बनता है। बोतलबंद पानी की पूरी प्रक्रिया में पारिस्थितिक तंत्र पर लगभग 2.400 गुणा अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है और 3,500 गुणा अधिक लागत आती है।

जहां तक प्लास्टिक का सवाल है, दुनिया में पानी को बोतल में बंद करने में हर साल लगभग 2.7 मिलियन टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। साथ ही उस बोतलबंद पानी को बाजार में ले जाने से वायु प्रदूषण और कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है। अधिकांशत: प्लास्टिक की बोतलें जलाने से क्लोरीन गैस और भारी धातुएं जैसे जहरीले उत्पाद हवा में फैल जाते हैं। दरअसल जहां बोतलबंद पानी पर्यावरण, सार्वजनिक ही नहीं मानवीय स्वास्थ्य आदि को प्रभावित करता है, वहीं उसकी बोतलें हमारे जल भंडारों व भूजल स्रोतों को नष्ट करती हैं। इसके साथ बोतलबंद पानी का कारोबार करने वालों का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे जो पानी जमीन से खींचते हैं, उसका वे नाम मात्र का मूल्य अदा करते हैं और कहीं-कहीं तो वे वह भी नहीं चुकाते हैं।

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