Flash Story
नरेंद्रनगर ब्लॉक के नौडू गांव में सड़क की सुविधा न होने से महिला का जंगल में ही हुआ प्रसव 
वजन घटाने के लिए कीटो डाइट है कारगर, इसका पालन करते समय खाएं ये 5 स्नैक्स
छठ महापर्व- पहाड़ से लेकर मैदान तक श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर की सुख-समृद्धि की कामना
दून से उत्तरकाशी और गौचर के लिए शुरू हुई हेलीकॉप्टर सेवा 
पटाखों के चलते हिंसा और हत्या
पुलिसकर्मी ई-रिट पोर्टल से उच्च न्यायालय में दाखिल कर सकते हैं प्रतिवेदन
लंदन डब्ल्यूटीएम में दिखी प्रधानमंत्री मोदी के ‘चलो इंडिया’ की छाप- महाराज
दिल्ली की हवा में नहीं कोई सुधार, AQI 352 के पार, प्रदूषण से बढ़ीं स्वास्थ्य समस्याएं
उत्तराखंड का नाम रोशन करने वाले राज्य के प्रवासियों को धामी सरकार करेगी सम्मानित

पटाखों के चलते हिंसा और हत्या

चेतन उपाध्याय
इस दीपावली पर पटाखे के कारण देश में जो कुछ हुआ हैं, उनमें से ज्यादातर में हिन्दू बनाम हिन्दू का मामला है। और निष्कर्ष है कि पटाखों के चलते हिंसा और हत्या के ज्यादातर मामलों में, लड़ाई हिन्दू बनाम हिन्दू की है। कोई 8वीं पास विद्यार्थी भी इंटरनेट पर ये सारे सबूत देख सकता है। यानी कि पटाखों ने हिन्दुओं को आपस में ही बँटने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि यह भी सच है कि धर्म विरोधी का तमगा मिल जाने के डर से अधिकाँश लोग इस सबको चुपचाप सह लेते हैं।

दूसरी बात यह है कि पटाखे के विरोध में गाँव-गाँव और मोहल्ले-मोहल्ले में हो रहे भयंकर विरोध और हिंसा के तमाम मामले थाने और मीडिया तक पहुँचते ही नहीं हैं। धर्म, परंपरा और उत्सव की आड़ में गुंडागर्दी और अराजकता है। और यह देशहित में नहीं है।

कड़वा सच है कि दीपावली का पटाखा हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाने का माध्यम बन गया है। उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में पुलिस और प्रशासन की जानकारी में ऐसे सैकड़ों मामले हैं जहाँ पर पर्व की आड़ में पटाखे का इस्तेमाल अपने दुश्मनों को सताने और हत्या करने में किया जा रहा है। पटाखे के कारण खुशियों का त्योहार नफरत, हिंसा और मातम का त्योहार बन गया है।

विदेशों में हरियाली का प्रतिशत बहुत ज्यादा होता है और यह हरियाली, आतिशबाजी के शोर और धुंए को सोख लेती है। साथ ही विदेशों में पटाखा फोडऩे के लिए एक बड़ा मैदान होता है जहाँ फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी तैयार रहती है। भारत देश में भी बड़े लोगों के घर के पास आप पटाखा नहीं फोड़ सकते, मगर आम आदमी के साथ,आये दिन कभी  धर्म की आड़ में डी.जे. तो कभी पटाखे की ऐसी गुंडागर्दी होती ही रहती है और ‘धार्मिक’ मामला बताकर पुलिस पल्ला झाड़ लेती है।

फिर पुलिस के मूकदर्शक बनने के बाद अपनी और अपने परिवार के सदस्य की जान बचाने के लिए जो भी आदमी, जानलेवा पटाखे का विरोध करता है, उसको धर्म विरोधी कह कर मार दिया जाता है मानो कि पटाखे से लोहवान, गुग्गुलु और चंदन की दिव्य महक आती हो। यह गुंडागर्दी बंद होनी चाहिए।

इसलिए सरकार को चाहिए कि वह आम जनता के साथ ही कोर्ट को बताए कि जिस आतिशबाजी के कारण हर साल अरबों रुपये की संपत्ति आग में स्वाहा हो जाती है, जिस आतिशबाजी के चलते बेजुबान जानवरों की जान खतरे में पड़ जाती है, जिस आतिशबाजी के कारण देश भर के करोड़ों अस्थमा मरीज तड़पड़ाते हैं, जिस पटाखे के कारण लोग अपनी आँख की रोशनी और सुनने की क्षमता खो दे रहे हैं, जिस पटाखे के शोर और धुएं को रोकने की लड़ाई में लोग आपस में मर-कट कर पुलिस और कोर्ट का बोझ बढ़ा रहे हों, वह पटाखा किसी भी धर्म और परम्परा का हिस्सा नहीं हो सकता।

पटाखे पूरी तरह से बंद हो। ना तो शादी-विवाह में, ना दीपावली-होली पर, ना ईद-बारावफात में और ना ही क्रिसमस-नए साल पर। 1947 से पहले और फिर 1947 से 2024 तक क्या हुआ, इसकी चर्चा में समय नहीं गँवा कर, व्यापक जनहित में अभी से पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सख्त जरुरत है। बारूद की गंध फैलाने का कार्य बंद होना चाहिए और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के, साल के 365 दिन, पटाखों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। किसी भी सभ्य समाज में पटाखों का कोई स्थान नहीं है और बारूदी दुर्गंध फैलाने वाले पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगाना ही एकमात्र विकल्प है। ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top